Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- ३१

                                            

                                                          भाग :- ३१


इकतीसवां  भाग शुरू 👇


ऋषभ  कॉलेज जाने से पहले ही सोच चुका है कि आज वह मधु से किसी भी तरह मिलकर ही रहेगा। अपने विषय के लेक्चर को अटेंड करने के बाद ऋषभ एक ऐसी जगह पर जाकर खड़ा हो जाता है जहां पर मधु के महिला कॉलेज कि कोई भी लड़की निकले तो उसकी नजर उस पर पड़ जाए।


बहुत देर तक ऋषभ  वहां पर खड़ा रहता है। करीब  सैकड़ों लड़कियां कॉलेज के मुख्य द्वार से बाहर निकलती उसे दिखाई देती  है लेकिन ऋषभ को  मधु दिखाई नहीं देती है।


आज भी वो जो दृश्य देख रहा है उसे देखकर हताश हो रहा है क्योंकि इससे पहले भी कई दिन ऐसा हो चुका है कि उसे मधु दिखी ही नहीं। अब तो उसके मन में यह सवाल भी उठने लगे हैं कि मधु इस काॅलेज में पढ़ती भी है या कि  नहीं।


ऋषभ अपनी साइकिल पर बैठे बिना पैदल ही अपनी साइकिल को लिए उदास मन से चल रहा होता है तभी उसकी नजर  अपने कॉलेज के गेट से निकलती मधु पर   पड़ती है। " मैं सपना तो नही देख रहा? मधु ही है या कोई और लड़की जिसे मैं मधु समझ रहा हूॅं। कपड़े भी मुझे कल वाले रंग के ही लग रहे है। कल जो वह  रेस्टोरेंट में  पहन कर आई  था वही गुलाबी रंग के सलवार - कमीज और दुपट्टा दिख रहा है।"  मन ही मन में कहते हुए ऋषभ ने अपनी साइकिल को स्टैंड पर खड़ा किया और जेब से रूमाल निकाल कर अपनी ऑंखों और चेहरे की गंदगी साफ की।


ऋषभ को लग रहा था कि कल रात जिस वेशभूषा में उसने मधु को देखा था उसे याद करते हुए उसके दिमाग में ये बात  इस तरह बैठ गई है कि उसे अब लड़कों के  कॉलेज के गेट पर भी मधु दिखने लगी है।


" वह लड़कों के कॉलेज के भीतर क्यों जाएगी" सोचते
हुए उसने जैसे ही अपनी ऑंखें खोली मधु उसे नही दिखी।


"मैं कह रहा था कि वह नही है, ये तो सिर्फ मेरा भ्रम था जो वह मुझे दिखी थी लेकिन मेरी मधु के भोलेनाथ! आप  ये मत समझना कि मैं मधु को नही ढूंढ पाऊंगा। मैं उसे ढूंढ लूंगा और अब तो उससे मिलने के बाद ही आपके दर्शन करूंगा।"  आसमान की तरफ देखकर बुदबुदाते हुए ऋषभ ने कहा।


कुछ देर तक ऋषभ वहीं पर खड़ा रहा उसके बाद वह अपनी साइकिल पर बैठा और घर जाने वाले रास्ते की ओर मुड़ गया। अभी कुछ दूर आगे गया ही था कि मधु की खनकती आवाज उसके कानो में पड़ी।


"फिर से .... पहले वह दिख रही थी अब आवाज भी सुनाई दे रही है।"  अपने आप पर बुदबुदाते हुए उसने आवाज की तरफ देखा। उसे फिर से गुलाबी सलवार -कमीज और दुपट्टा में मधु किताब खरीदते हुए दिखी, उसके साथ एक - दो और लड़कियां थी जो उससे किताब के बारे में पूछ रही थी और वह उन्हें बता रही थी। बहुत दिनों बाद कोचिंग वाली मधु के रूप को देखकर ऋषभ को यकीन हो ही गया कि उसे मधु इसलिए दिख रही है क्योंकि वह यही उसके सामने किताब वाली दुकान पर खड़ी है।


अपनी साइकिल किताब की दुकान के बाहर लगाकर वह भी दुकान के भीतर गया और मधु से कुछ दूरी पर खड़ा हो गया। मधु की बात बहुत दिनों बाद वह इतने नजदीक से सुन रहा था। कान तो उसके मधु के तरफ ही थे लेकिन ऑंखे वह मधु पर नहीं टिकाकर सबकी तरफ एक नजर देखने की कोशिश कर रहा था।


"तुम्हें क्या चाहिए?"  दुकानदार की आवाज सुनकर ऋषभ ने दुकानदार की तरफ देखा।


"मु..झे .... कु... छः... नही।"  ऋषभ ने हकलाते हुए दुकानदार से बोला।


"कुछ नहीं चाहिए तो भीड़ ना बढ़ाओ भाई।"  दुकानदार ने अपनी आवाज में तेजी लाकर कहा।


ऋषभ ने एक नजर मधु पर डाली। वह अभी भी अपने दोस्तों से किताब की ही बात कर रही थी। उसे अपने में मगन देखकर ऋषभ से नही रहा गया उसने अपनी आवाज में तेजी लाते हुए दुकानदार से कहा 👇

ऋषभ  :-  मुझे  जेटर पेन चाहिए।


जेटर पेन और ऋषभ की आवाज ने मधु को उस तरफ देखने पर मजबूर कर दिया जिस तरफ से आवाज आई थी।


उस दिन और उस पल पहली बार ऐसा हो रहा था कि दोनों एक - दूसरे को इतने नजदीक से देख पा रहे थे। दोनो ने एक - दूसरे से एक शब्द तक नहीं कहा लेकिन ऑंखों ने यह भांप लिया कि उन्हें अब क्या करना है?


आगे - आगे ऋषभ अपनी साइकिल चला रहा था और पीछे - पीछे मधु उसी तरफ जा रही थी जहां ऋषभ जा रहा था। कुछ दूर जाने के बाद ऋषभ ने एक चाट की दुकान के आगे अपनी साइकिल खड़ी कर दी और अंदर चला गया। पीछे से मधु ने भी साइकिल खड़ी की और दुकान के भीतर आ गई। एक कोने में बैठा ऋषभ उस तरफ ही देख रहा था जिस तरफ से मधु तेज कदम बढ़ाते हुए उसके पास आ रही थी।


दोनों के दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थी। इतने दिनों बाद इतने पास बैठकर भी दोनों चुप थे। वेटर के आने पर ऋषभ ने ही दो चाट और एक कोल्डड्रिंक का ऑर्डर दिया। वेटर के जाने के बाद ऋषभ ने ही चुप्पी तोडी़ और मधु की ऑंखों में झांकते हुए उससे पूछा 👇

ऋषभ :- कैसी हो?


मधु ने मुस्कुरा कर इशारे से हां भर कहा बोला कुछ नही।


ऋषभ ने फिर से उससे पूछा 👇

ऋषभ :-  पढ़ाई कैसी चल रही है तुम्हारी? मेरी तो ठीक ही चल रही है लेकिन तुम्हें तो पढ़ना पड़ेगा क्योंकि कुछ महीने बाद तुम्हारी बारहवीं की परीक्षा जो है।


"हाॅं! कुछ ही महीने बचे हैं इसलिए कोस्चन बैंक ले रही थी। उससे थोड़ा - बहुत आइडिया हो जाता है कि किस तरह के सवाल बारहवीं में पूछें जाते हैं।"  मधु ने ऋषभ के सवाल का जवाब देते हुए कहा।


"तुम अच्छे नंबर से इस बार भी पास कर जाओगी।"  ऋषभ ने मुस्कुराते हुए कहा।


"पास से याद आया, इस बार अच्छे नंबर तो आए है ना तुम्हारे? " मधु ने ऋषभ से पूछा।


"इस बार ठीक है, पिछली बार तुम्हारे चक्कर में फेल हो गया था।"  ऋषभ ने लगभग हॅंसते हुए कहा।


"मेरे चक्कर में?  जहां तक मेरा ख्याल है मैंने तो कुछ  किया भी नही था।" मधु ने ऋषभ की तरफ आश्चर्य से देखते हुए कहा।


"तुमने मुझ पर जादू किया है तभी तो दिन - रात तुम्हारे ही ख्यालों में डूबा रहता हूॅं।" ऋषभ ये बातें कहना तो चाहता था मधु से लेकिन कह नही पाया। मधु की तरफ देखते हुए चुपचाप मन ही मन में सोचता रहा।


"क्या सोचने लग गए ?  मैंने ऐसा क्या कर दिया जिसकी वजह से तुम फेल हो गए थे?" मधु ने ऋषभ को चुप बैठे  देखकर उससे पूछा।


"मैं तो मजाक कर रहा था। ऐसे ही बोल दिया तुम्हें। उमेश सर की कोचिंग का हाल तो तुमने सुना ही होगा लेकिन मैंने उसे देखा भी है और झेला भी था। ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाया  था उस वक्त, इसी वजह से फेल हो गया था।"  ऋषभ ने मधु को समझाते हुए कहा।


"अच्छा हुआ तुमने मुझे बता दिया वरना मैं अपने आप को तुम्हारा अपराधी मानती रहती लेकिन एक बात समझ में नही आई अब तुम मजाक भी करते हो? पहले तो कम बोलने वाले लड़कों जैसे थे तुम। वाकई! बीते सालों की अपेक्षा आज तुममें बदलाव हुआ है।"  मधु ने ऋषभ से कहा।


मधु किस बदलाव की बात कर रही थी? ऋषभ से उसकी आगे क्या बात हुई? जानने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💓💞💓


# उपन्यास लेखन 


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1 Comments

Shnaya

21-Oct-2022 08:03 PM

बेहतरीन भाग

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